The best Side of sidh kunjika



देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति त्रयोदशोऽध्यायः

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति एकादशोऽध्यायः

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥ ४ ॥

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति चतुर्थोऽध्यायः

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति तृतीयोऽध्यायः

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से विपदाएं स्वत: ही दूर हो जाती हैं और समस्त कष्ट से मुक्ति मिलती है। यह सिद्ध स्त्रोत है और इसे करने से दुर्गासप्तशती पढ़ने के समान पुण्य मिलता है।

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देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति नवमोऽध्यायः

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

On chanting in general, Swamiji claims, “The greater we recite, the greater we hear, and the more we attune ourselves for the vibration of what's being stated, then the more We are going to inculcate that attitude. Our intention amplifies the Frame of mind.”

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जंभनादिनी ।

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